रोचक और शिक्षाप्रद छोटी कहानियाँ क्यों जरूरी हैं सही और गलत की पहचान

रोचक और शिक्षाप्रद कहानियाँ: हम हमेशा अपने पाठकों के लिए सबसे अच्छी शिक्षाप्रद कहानीं लेकर आते है। प्रेरणादायक कहानियां आपके जीवन मे नई ऊर्जा भरने का कार्य करती हैं। प्रेरक कहानीं सकारात्मक विचार पैदा करती हैं। आज आपके लिए एक और प्रेरणादायक कहानीं प्रस्तुुत हैं


छोटी शिक्षात्मक कहानीं

जानिए सही और गलत की पहचान क्यों जरूरी है

हम कई बार ऐसे काम करते है जिनके बारे मे हम अपने तर्क का भी इस्तेमाल नही करते। और हम ये मानकर ऐसा ही करते रहते हैं कि ये तो पहले से ही होता आया हैं। लेकिन ये सही नही है आज दुनिया बदल रही हैं। अगर जो पहले से होता आया है ऐसा ही सब करते रहते तो ये दुनिया जहां पहले थी वही आज भी होती। बहुत सी ऐसी ही प्रथा चली आ रही हैं जिसके बारे मे किसी को कुछ नहीं पता लेकिन फिर भी सभी उन्हें इस लिए अपनाते हैं कि ऐसा तो पहले से होता आया हैं। जिससे उनके धन व समय का नुकसान होता है।


साधु और खरगोश की शिक्षाप्रद कहानीं

एक बार एक साधु गांव से दूर जंगल मे एक कूटिया मे रहता था। वह अक्सर गांव मे कुछ दान दक्षिणा के लिए आता रहता था। एक बार वह गांव से अपनी कूटिया के लिए जा रहा था। शामः का समय था। रास्ते मे उसे एक खरगोश का बच्चा मिला वह घायल था। लेकिन खरगोश का बच्चा बहुत सुन्दर था। साधु ने उस खरगोश के बच्चे को उठाया और अपनी कुटिया पर ले गया। उसका घरेलू उपचार किया गया। कुछ ही दिनो मे खरगोश का बच्चा बिल्कुल ठीक हो गया। अब साधु खरगोश के बच्चे को जंगल मे छोडने के बारे मे सोच रहा था। फिर उसने यह सोचकर खरगोश के बच्चे को अपने पास ही रखने का फैसला किया कि कही यह दोबारा से घायल ना हो जाये। बच्चा बहुत चंचल और सुन्दर था। लेकिन उस बच्चे को एक आदत सी लग गयी थी कि जब भी साधु साधना करनेे के लिए बैठता तभी वह खरगोश का बच्चा साधु के ऊपर आकर खेलने लग जाता था। कभी सिर पर चढता कभी कंधे पर इससे साधु को अपनी साधना करने मे परेशानी होती थी। खरगोश का बच्चा रोज ऐसे ही करता। साधु ने परेशान आकर अपने चेले से कहा कि जब भी मैं साधना करने बैठूं तब खरगोश के बच्चे को सामने वाले पेड से बाध देना। अब जब भी साधु साधना करने बैठता तभी खरगोश के बच्चे को सामने वाले पेड से बांधा जाने लगा।

ऐसा ही चलता रहा खरगोश का बच्चा बडा हो चुका था। लेकिन अभी भी साधना के समय उसे पेड से बांधा जाता था। कुछ दिनो के बाद उस साधु की मृत्यु हो जाती हैं। मृत्यु के बाद कुटिया मे साधना करने की जिम्मेदारी साधु के सबसे पुराने चेले को दी गई। अब नया बना साधु भी जब साधना करता तभी खरगोश को पेड से बांधने को कहता। कुछ दिनो के बाद वह खरगोश भी मर गया। खरगोश के मरने के बाद दूसरा खरगोश खरीद कर लाया गया और साधना के समय उसे पेड से बांधना भी जारी रहा क्योंकि वे सोचते थे कि हमारे गुरू जी भी ऐसा करते थे क्या पता ऐसा करने से ही हमारी तपस्या, हमारी साधना कबूल होती हो इसलिए हम भी खरगोश को पेड से बाधकर साधना करेगें। तभी हमारी साधना पूरी होगी। ऐसा करते करते वर्षों बीत गये कई नये साधु बने और कई खरगोश भी मरे फिर से दूसरे खरगोश लेकर आते रहे। लेकिन किसी ने ये समझने की कोशिश नही की कि इस खरगोश को पेड से क्यो बांधते हैं। और ऐसा देखकर बाकी आसपास के पुजारी भी अपने यहां खरगोश को बांधकर पूजा करने लगे। ये एक परंपरा सी बन गई कि इसके बिना तो कोई पूजा कर ही नही सकता।

ऐसा ही आज भी बहुत से कार्य है जिनके बारे मे किसी को कुछ नही पता कि इसे किस लिए किया जा रहा है लेकिन उन्हें ऐसा मानकर करते हैं कि ऐसा तो पहले से ही होता आया है। इसमे कुछ ना कुछ बात तो होगी जो इसे पहले से ही करते आये हैं। और बिना सोचे समझे ज्यादातर लोग ऐसा ही मान लेते हैं। ये नहीं सोचते कि पहले कोई मजबूरी रही होगी जो आज नही हैं या कोई और वजह रही होगी जो आज नही है। इनसे हमे कुछ लाभ भी हैं या बस अपना वक्त ही खराब कर रहे हैं।

नोट: इस कहानीं का उद्देश्य किसी की पूजा के प्रति आस्था को ठेस पहुचाना नही हैं अगर किसी को कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा चाहता हूं।

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