शिक्षा देने वाली छोटी कहानियाँ | ज्ञान देने वाली कहानींं

ये शिक्षा देने वाली छोटी कहानियाँ, ज्ञान देने वाली कहानींं। इस कहानीं से आपको ये समझने मे आसानी होगी कि अपनी समस्याओं को कैसे खत्म किया जाये। कहानीं के द्वारा आपको बहुत ही अच्छे तरीकों से किसी भी समस्या का समाधान करने की प्रेरणा मिलेगी यही हमारा मुख्य उद्देश्य हैं। कहानीं को पूरा अवश्य पढें कही कोई महत्वपूर्ण बात आपसे छूट ना जाये।

शिक्षा देने वाली छोटी कहानियाँ | ज्ञान देने वाली कहानींं


यह Moral कहानीं है दो दोस्तों की

छोटी शिक्षात्मक कहानीं

क बार दो दोस्त थे जिनका नाम रमण और दिनेश था वे दोनो बहुत अच्छे दोस्त थे स्कूल टाइम से ही उन दोनों मे दोस्ती थी दोनों के घर भी पास पास ही थे जिससे वे दोनो आपस मे बहुत समय बिताते थे दोनो एक साथ पढते थे एक साथ खेलते थे यहा तक कि कभी कभी शामः का खाना भी एक साथ ही खाते थे। लेकिन दोनों के काम करने के तरीक़े मे काफी अन्तर था दिनेश अपने काम को बहुत जल्दी करता था और ये कोशिश करता था कि वह सबसे पहले काम को खत्म कर दे। यानि कि वह बहुत जल्दबाजी मे रहता था. और रमण अपने काम को भले ही धीमी गति से करता लेकिन वह सोच समझकर हर एक पांइट को ध्यान मे रखकर करता था जिससे बाद मे उसके किये कार्य मे कोई दिक्कत ना हो। दिनेश अक्सर अपने काम मे गलती कर बैठता था लेकिन रमण हमेशा ही काम मे ज्यादा समय लेता लेकिन एकदम परफेक्ट रिजल्ट देता था।

एक बार रमण और दिनेश दोनो सुबह की मांर्निग वाँक पर चल दिये और चलते चलते दोनों मे बातो बातो मे बहस होने लगी की मैं तुझसे देज दौड सकता हूँ अब दोनो दोस्तों मे बातो बातो मे सर्त लग गयी कि आज देख ही लेते कौन ज्यादा तेज दौड सकता है। दोनो दौड लगाने के लिए तैयार हो गये थोड़ी देर मे दौड शुरू हो जाती है कुछ दूर दोडने के बाद रमण रूक जाता हैं और अपने जूतों मे कुछ देखने लगता हैं। रमण को रूका देखकर दिनेश ने रमण से कहा क्या हुआ रूक क्यों गये क्या तुम मेरे साथ दौड नही कर सकते। रमण ने कहा मेरे जूते मे कुछ कंकड़ घुस गए हैं मैं इनको निकालने के बाद ही दौड सकता हूँ वरना मैं कुछ ही दूर जाने के बाद चल भी नहीं पाऊंगा। यह सुनकर दिनेश हसने लगा और कहने लगा मुझे किसी पत्थर का डर नही हैं मैं बिना पत्थर निकाले ही दौड पूरी कर सकता हूँ। और आगे निकल गया। रमण कुछ देर बाद अपने जूतों से कंकड निकाल कर दोडने लगा।

अब दिनेश के जूतों मे धसे कंकड उसके पैरों मे चुभने लगे थे और थोड़ी दूर चलने के बाद दिनेश के पैर बहुत ज्यादा घायल हो चुके थे पैरों से खुन बहने लगा। और दर्द से बेहाल दिनेश जमीन पर लेट गया अब रमण कुछ आगे जा चुका था दिनेश ने रमण को आवाज़ लगाकर मदद करने को कहा रमण वापस अपने दोस्त के पास आया और उसकी मदद करने लगा उसके पैर खून से लदपद हो गये थे रमण अपने दोस्त को घर लेकर आया फिर उसके पैरों मे दवाई लगाई जब दिनेश का दर्द सही हो गया अब दिनेश को अपने किये पर पछतावा होता हैं

यह कहानीं हमे एक ही बार मे कई बाते सिखाती है एक कि हमे अपनी समस्याओं को बडी होने से पहले ही खत्म कर देना चाहिए जैसे रमण ने अपने जूतों से कंकड पहले ही समय रहते निकाल लिये थे उसी प्रकार हमारी अनेक समस्याएं जो कोई बीमारी हो सकती कोई रिस्तों मे गलतफहमी हो सकती हैं या कोई और भी समस्या हो उसे तभी खत्म कर देना चाहिए जब समस्या छोटी हो क्योंकि जब समस्या देखते देखते बडी हो जाती हैं तो फिर उसे सही करना मुश्किल हो जाता हैं।

दूसरी जल्दबाजी हमेशा नुकसान दायक होती हैं जैसे दिनेश ने दौड मे जल्दबाजी दिखाई थी और अपने जूतो मे फसे कंकड को निकालना भी जरूरी नहीं समझा और फिर जो नतीजा मिला वो बहुत ही खराब था उसी तरह किसी भी कार्य को करने मे जल्दबाजी नही करनी चाहिए बल्कि उसे सही ढंग से करने पर ज्यादा जोर देना चाहिए जिससे कार्य एक ही बार मे सही तरीक़े से हो सके।

तीसरी बात ये कि हमे सिर्फ सफलता को ही target लेकर चलते हैं लेकिन हमे अपनी सफलता के लिए सभी पहलूओं मे कार्य करना चाहिए जैसे दिनेश का target सिर्फ रैस को जीतना था लेकिन उसने ये नही सोचा कि मुझे रैस जीताने के लिए अपने जुते और पैर का सही होना भी जरूरी है दूसरी तरफ रमन ने रैस जीतने को अपना सीधा लक्ष्य ना बनाकर उसे रैस जीतने मे उपयोग होने वाले सभी पहलुओं पर ध्यान दिया तभी वह रैस जीत सका।

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