सोच का फर्क | अच्छी सोच वाली प्रेरक कहानी

अच्छी सोच वाली कहानी:

दोस्तों जैसी जिसकी सोच होती हैं वो वैसा ही बनता चला जाता हैं। यदि मालिक जैसी सोच हैं तो यकीनन मालिक ही बनेगा और यदि किसी की नौकर जैसी सोच हैं तो वो नौकर ही बनेगा। बहुत जरूरी है कि अपनी सोच को हमेशा ऊची रखें साकारात्मक रखें ऐसा सफलता के लिए बेहद जरूरी होता हैं।

सोच का फर्क प्रेरक रोचक कहानीं इन हिंदी

सोच का फर्क प्रेरक प्रसंग

हमेशा मालिक की तरह सोचो

यह कहानी हैं दो दोस्तों की जो अलग अलग शहर से थे और कालेज के हाँँस्टल के एक ही कमरे मे रहते थे। वे दोनो कालेज मे मिले थे और दोनो मे दोस्ती हो गई। दोनो ने कालेज की पढाई पूरी की और फिर सरकारी जाँब के लिए कोचिंग करने के लिए दूसरे शहर मे चले गये। वहा दोनो ने एक किराये का कमरा लिया और दोनो एक साथ रहकर कोचिंग करने लगे। लेकिन दोनो मे से किसी की भी नौकरी नही लगी। दोनो दोस्त अपने करियर को लेकर परेशान थे और कुछ दिन बाद वे दोनो अलग अलग शहर मे चले गये। अलग अलग शहर मे जाकर एक किसी कम्पनी मे नौकरी करने लगा और दूसरे ने एक अपना छोटा सा बिजनेस शुरू किया।

कुछ सालो के बाद नौकरी करने वाले दोस्त का मन अब नौकरी मे नही लग रहा था क्योंकि उसे जो सैलरी मिल रही थी वो बहुत कम थी जिसमे वह अपना व परिवार का खर्चा ठीक से नही चला पा रहा था। उसने वह नौकरी छोड दी और कोई अच्छी नौकरी जिससे उसे और अधिक पैसे मिले ऐसी नौकरी की तलाश मे दूसरे शहर मे गया। एक दिन सुबह का समय था वे पुराने दोस्त एक बस स्टाप पर मिले दोनो ने एक दूसरे को पहचान लिया। हाल चाल पुछा तो नौकरी करने वाला दोस्त ने कहा कि वह बहुत परेशान हैं पहले एक नौकरी करता था जिसमें कम सैलरी थी इसलिए उसे छोड दिया और अब दूसरी नौकरी की तलाश मे घुम रहा है।

फिर दूसरे दोस्त से पूछा तो उसने कहा कि वह बिल्कुल मजे मे हैं और अपनी एक छोटी कम्पनी हैं जिससे वह अच्छे पैसे कमा लेता हैं। और दोस्त होने के नाते दोस्त को भी नौकरी पर रखने के लिए कहा। दूसरा दोस्त अगले दिन से ही काम पर आने लगा। काम ठीक था ज्यादा महनत का काम नही था बस लेवर का हिसाब किताब रखने की जिम्मेदारी थी। कुछ दिन नौकरी करने के बाद दोस्त ने अपनी कम्पनी के मालिक जो उसका दोस्त था उससे कहा कि हम दोनो एक ही कालेज मे पढे पढने मे भी एक जैसे ही थे

और आज तुम एक कम्पनी के मालिक हो और मै बस नौकरी ही कर रहा हूँ ऐसा किया हैं जो तुमने इतना बडा बिजनेस कर लिया और मैं बस एक नौकर की ही तरह इधर ऊधर थक्के खा रहा हूँ। तो कम्पनी का मालिक बोला कि तुम्हारी सोच जब भी नौकर वाली थी और आज भी नौकर वाली ही है याद है तुम्हें एक दिन हम दोनो कोचिंग के लिए जा रहे थे कुछ दूर जाने बाद याद आया कि हमारे कमरे का पंखा और बल्ब चालू हैं।

तो तुमनें कहा था कि रहने दो किराए का ही तो कमरा हैं हमे क्या फर्क पड़ता हैं कि कितनी भी बिजली फूके पंखा खराब हो या बल्ब सब मकान मालिक का ही तो हैं। और तुम कोचिंग चले गये। लेकिन मै वापिस जाकर कमरे का पंखा और बल्ब बंद करके ही कोचिंग गया था। मै बैसक किराए के कमरे मे रहता था लेकिन मैं हमेशा मालिक की तरह रहता था। और आज भी मालिक ही हूँ।

इस कहानी से सीख मिलती हैं कि हमे हमेशा मालिक की तरह रहना चाहिए जिस भी कार्य को करन चाहो तो उसे मालिक की तरह करना चाहिए क्योंकि मालिक से कभी भी कोई भी अपना काम गलत नही हो सकता।
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